Tuesday, July 19, 2022

क्या भारत में बादल फटने के पीछे चीनी साजिश:

 



क्या भारत में बादल फटने के पीछे चीनी साजिश:ड्रैगन बिन मौसम बारिश कराने में माहिर, 8 सवालों में जानें पूरा मामला

एक मिनट पहलेलेखक: अभिषेक पाण्डेय / नीरज सिंह
17 जुलाई 2022: तेलंगाना के मुख्यमंत्री चंद्रशेखर राव ने कहा कि भारत में बादल फटने की घटनाओं के पीछे विदेशी ताकतों की साजिश है। पहले भी उन्होंने लेह-लद्दाख और उत्तराखंड में यही किया था।


8 जुलाई 2022: जम्मू-कश्मीर स्थित पवित्र अमरनाथ गुफा के पास बादल फटने से आई बाढ़ में 16 लोगों की मौत हो गई, जबकि 40 अभी भी लापता हैं।


जुलाई-अगस्त 2008: तब चीन की राजधानी बीजिंग में ओलिंपिक चल रहा था। मौसम विभाग ने मैच के दिन बारिश की आशंका जाहिर की। इससे बचने के लिए चीन ने मैच के एक दिन पहले ही कृत्रिम बारिश, यानी आर्टिफिशियल रेन करवा ली थी।


1967-1972: वियतनाम युद्ध के दौरान अमेरिका ने ऑपरेशन पोपोय चलाया था। अमेरिकी सेना ने वियतनाम में क्लाउड सीडिंग के जरिए अपनी मर्जी से बारिश कराते हुए दुश्मन सेना को भारी नुकसान पहुंचाया था।


इधर तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव के बयान पर भारत में नई बहस छिड़ गई है। सोशल मीडिया में एक तबका इसका मजाक उड़ा रहा है, तो वहीं एक तबका ऐसा भी है, जो इसे गंभीर मानकर इस पर चर्चा कर रहा है।


सवाल 1: सबसे पहले जानते हैं कि केसीआर ने क्यों बारिश को लेकर विदेशी साजिश की बात कही?


भारी बारिश की वजह से तेलंगाना का गोदावरी इलाका इन दिनों बाढ़ से जूझ रहा है। मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव, यानी केसीआर 17 जुलाई को बाढ़ प्रभावित भद्राचलम के दौरे पर गए थे। वहां उन्होंने गोदावरी इलाके में भारी बारिश और बाढ़ के लिए बादल फटने को वजह बताते हुए कहा कि इसके पीछे विदेशी साजिश हो सकती है।


राव ने कहा, 'ये एक नई घटना है, जिसे बादल फटना कहते हैं। लोग कहते हैं कि इसमें कुछ साजिश है, हम नहीं जानते कि ये कितना सच है, कहा जाता है कि विदेशी जानबूझकर हमारे देश में कुछ जगहों पर बादल फटने की घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं। लेह-लद्दाख और उत्तराखंड में भी पहले वे ऐसा कर चुके हैं


सवाल 2 : अब जानते हैं कि ये बादल फटना क्या होता है?


छोटे से इलाके में बहुत कम समय में बहुत ज्यादा बारिश होने को बादल फटना कहते हैं।


इसमें बादल फटने जैसा कुछ नहीं होता। हां, ऐसी बारिश इतनी तेज होती है जैसे बहुत सारे पानी से भरी एक बहुत बड़ी पॉलीथिन आसमान में फट गई हो। इसलिए इसे हिंदी में बादल फटना और अंग्रेजी में cloudburst के नाम से पुकारा जाता है।


अब बादल फटने को गणित से समझते हैं। मौसम विभाग के मुताबिक जब अचानक 20 से 30 वर्ग किलोमीटर के इलाके में एक घंटे या उससे कम समय में 100mm या उससे ज्यादा बारिश हो जाए तो इसे बादल फटना कहते हैं।


इसके लिए सबसे पहले 1mm बारिश का मतलब समझते हैं। देखिए, 1mm बारिश होने का मतलब है कि 1 मीटर लंबे और 1 मीटर चौड़े यानी 1 वर्ग मीटर इलाके में 1 लीटर पानी बरसना। अब इस गणित को बादल फटने की परिभाषा पर फिट कर दें तो जब भी 1 मीटर लंबे और 1 मीटर चौड़े इलाके में 100 लीटर या उससे ज्यादा पानी बरस जाए, वो भी एक घंटे या उससे भी कम समय में, तो समझिए कि इस इलाके पर बादल फट गया।


बस 100 लीटर! यूं, तो आपको गणित बहुत छोटा लग रहा होगा। इसकी भयावहता का अंदाजा लगाने के लिए अगर इस गणित को 1 वर्ग मीटर के बजाय 1 वर्ग किलोमीटर के इलाके में फिट कर दें तो, जब भी 1 वर्ग किलोमीटर इलाके में एक घंटे से कम समय में 10 करोड़ लीटर पानी बरस जाए तो समझिए वहां बादल फट गया। 


सवाल 3 : क्या भारत में बाढ़ आने के पीछे चीन की साजिश है?

1970 से 2016 यानी इन 46 सालों में देश में बादल फटने की 30 से ज्यादा घटनाएं हुईं। ये सभी घटनाएं हिमालय के क्षेत्र में हुईं। जम्मू-कश्मीर, लद्दाख, उत्तराखंड और अरुणाचल प्रदेश में बादल फटने के बाद भारी बारिश से कई बार बाढ़ आ चुकी है।

2013 में उत्तराखंड में बादल फटने के कारण अचानक आई बाढ़ से केदारनाथ में आपदा आई थी। इस दौरान 5 हजार से ज्यादा लोगों की मौत हो गई थी। वहीं असम में हर साल बारिश और बाढ़ से सैकड़ों लोगों की मौत हो जाती है।

चूंकि बादल फटने की ज्यादातर घटनाएं भारत-चीन के बॉर्डर वाले इलाकों में होती हैं। ऐसे में इसके पीछे चीन की साजिश होने की आशंका जताई जा रही है। चीन और भारत के बीच कई सालों से सीमा विवाद चल रहा है।

चीनी सेना समय-समय पर बॉर्डर पर उकसाने वाली कार्रवाई करती रहती है। ऐसे में कई लोग संदेह जता रहे हैं कि चीन बादल फटने की साजिश रच रहा है और बारिश और बाढ़ से भारत को नुकसान पहुंचाने की कोशिश कर रहा है।

  • चंद्रशेखर के तेलंगाना में बाढ़ के पीछे चीन की साजिश की बात में कितना दम है?
  • इस दावे के सही होने की संभावना काफी कम है, क्योंकि तेलंगाना चीन बॉर्डर से 3 हजार किलोमीटर से ज्यादा दूर है। साथ ही तेलंगाना हिमालय क्षेत्र में भी नहीं आता है, जहां पिछले 46 सालों में 30 से ज्यादा बादल फटने की घटनाएं हुई हैं।
  • ऐसे में माना जा रहा है कि चंद्रशेखर का चीनी साजिश का बयान चुनावी शिगूफा है और वह इस बयान से तेलंगाना में बाढ़ से जुड़े मुद्दे से ध्यान भटकाना चाहते हैं।

सवाल 4 : कितने देशों में है आर्टिफिशियल रेन कराने की टेक्नोलॉजी?

भारत, चीन, अमेरिका समेत दुनिया के 60 देश कृत्रिम बारिश या आर्टिफिशियल रेन कराने की टेक्नोलॉजी विकसित कर चुके हैं।

कृत्रिम बारिश कराने की तकनीकि को क्लाउड सीडिंग या वेदर कंट्रोल टेक्नोलॉजी कहते हैं। क्लाउड सीडिंग के जरिए जब चाहे या फिर समय से पहले बारिश कराई जा सकती है। चीन इस टेक्निक में महारत हासिल कर चुका है और कई बार इसका इस्तेमाल कर चुका है।

चीन 2008 का ओलिंपिक बिना बारिश की रुकावट के कराने में सफल रहा था
बीजिंग में 2008 में हुए ओलिंपिक खेलों के दौरान चीन ने वेदर मॉडिफिकेशन टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करके जिन शहरों में ओलिंपिक के मैच होने वाले थे, वहां एक दिन पहले ही बारिश करा दी थी। इससे अगले दिन आसमान साफ हो जाता था और बारिश नहीं होती थी। इस टेक्नोलॉजी की मदद से चीन बीजिंग ओलिंपिक 2008 का आयोजन बिना बारिश की रुकावट के करा पाया था।
सवाल 5 : आखिर क्लाउड सीडिंग क्या होती है?

आर्टिफिशियल तरीके से बादलों को बारिश में बदलने की टेक्निक को हम क्लाउड सीडिंग कहते हैं।

क्लाउड सीडिंग के लिए सिल्वर आयोडाइड, पोटैशियम आयोडाइड और ड्राई आइस (सॉलिड कॉबर्न डाइऑक्साइड) जैसे रसायनों को हेलिकॉप्टर या प्लेन के जरिए आसमान में बादलों के करीब बिखेर दिया जाता है। ये पार्टिकल हवा में भाप को आकर्षित करते हैं, जिससे तूफानी बादल (cumulonimbus cloud) बनते हैं और अंत में बारिश होती है।

इस तरीके से बारिश होने में अमूमन आधा घंटा लगता है।

सवाल 6: आमतौर पर इस टेक्नीक का क्या इस्तेमाल है?

ये टेक्निक अक्सर सूखा प्रभावित इलाकों या वायु प्रदूषण से निपटने के लिए इस्तेमाल होती है। कई बार क्लाउड सीडिंग का इस्तेमाल कुछ एयरपोर्ट के आसपास कोहरे को खत्म करने में भी किया जाता है। बीजिंग ओलिंपिक इसका एक बड़ा उदाहरण है, जहां चीन ने बीजिंग में क्लाउड सीडिंग के जरिए बादलों को बारिश में बदलते हुए एक दिन पहले ही बारिश करवा ली थी।

क्लाउड सीडिंग के दो प्रमुख उद्देश्य होते हैं- या तो मर्जी से बारिश या बर्फबारी को बढ़ाना या किसी खास जगह पर एक-दो दिन पहले ही बारिश करा लेना।

सवाल 7: पहली बार क्लाउड सीडिंग टेक्नीक का इस्तेमाल कब हुआ था?

इसका पहला सफल प्रयोग 1946 में अमेरिकी वैज्ञानिक विंसेंट जे शेफर ने किया था। इसके बाद विमान, रॉकेट, तोपों और ग्राउंड जनरेटर से क्लाउड सीडिंग की जाती रही है।

सवाल 8: क्या क्लाउड सीडिंग से बादल फट सकते हैं?

देखिए, बहुत तेज बारिश होने और बादल फटने में कोई खास अंतर नहीं होता है, जब एक निश्चित जगह पर एक निश्चित समय में बहुत ज्यादा बारिश हो जाती है, तो उसे हम बादल फटना कहते हैं। बादल फटना बादलों पर डिपेंड करता है। अगर ऐसे में बहुत ज्यादा भाप से भरे बादलों की पहचान करके उसमें क्लाउड सीडिंग करा दें, तो बादल फट सकते हैं।

अमेरिका ने क्लाउड सीडिंग का इस्तेमाल वियतनाम के खिलाफ युद्ध में किया था

अमेरिका ने 1967 से 1972 के बीच वियतनाम युद्ध के दौरान क्लाउड सीडिंग टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया था। अमेरिका ने ‘ऑपरेशन पोपोय’ चलाते हुए ऐसा वियतनाम पर बढ़त बनाने के लिए किया था। हालांकि इस बात पर अब भी एक राय नहीं है कि अमेरिका को इसमें कितनी कामयाबी मिली थी।

कुछ रिपोर्ट्स के मुताबिक, अमेरिका ने वियतनाम के हो चि मिन्ह शहर पर क्लाउड सीडिंग के जरिए बादल फटने की घटना को अंजाम दिया था। इससे वहां अचानक बारिश, बाढ़ और लैंडस्लाइड की स्थिति पैदा कर दी थी। इससे वियतनाम सेना को भारी नुकसान पहुंचा था।

दुबई में 2021 में किया गया था क्लाउड सीडिंग के लिए इलेक्ट्रिक चार्ज टेक्नीक का इस्तेमाल

जुलाई 2021 में दुबई में जब तापमान 50 डिग्री तक पहुंच गया तो गर्मी से राहत के लिए वहां क्लाउड सीडिंग कराई गई थी। इसके लिए सिल्वर आयोडाइड, पोटैशियम आयोडाइड और ड्राई आइस को प्लेन और हेलिकॉप्टर्स के जरिए आसमान में बिखेर दिया गया था।

इन केमिकल के कणों ने हवा की नमी को अपनी ओर खींचा। जब पानी के सभी कण पास आ गए तो एक बड़ा तूफानी बादल बन गया। फिर ड्रोन के जरिए इस बादल को इलेक्ट्रिक चार्ज किया गया, जिससे बारिश हुई। इस प्रॉसेस से बारिश करवाने में आधे घंटे ही लगे थे।









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