Thursday, January 4, 2018

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता_कनीना सिटी रेस्पोंसिबल

कनीना सिटी रेस्पोंसिबल पर हम प्रतिदिन समाचारपत्रों से खबरें और कुछ अलग से पोस्ट डालते है ताकि आप सब कनीना में हो रही गतिविधियों से परिचित रह सकें। दोस्तों कनीना कभी ख़ास था, आज सिटी रेस्पोंसिबल है। हमारे पास अपने निजी विचार है, और हम स्वतंत्र है उनको अभिव्यक्त करने के लिए। अगर हमारे पास अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार है तो साथ मे कुछ कर्तव्य भी है जिनका हमे बोध होना आवश्यक है।
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता हमारा मौलिक अधिकार है।
हमे इसे जानना अत्यंत आवश्यक है।

क्‍या कहता है संविधान

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 (1) के तहत देशवासियों को भाषण और अभिव्यक्ति की आज़ादी है। कोई भी नागरिक व्यक्तिगत, लेखन, छपाई, चित्र, सिनेमा इत्यादि के माध्यम से किसी भी मुद्दे पर अपनी राय और विचार दे सकता है। यह उसका मौलिक अधिकार है, लेकिन संविधान  के अनुच्छेद 19(2) में उन आधारों का उल्लेख किया गया है जिनके तहत राज्य भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर उचित प्रतिबंध लगा सकता है। इसके तहत ऐसे किसी भाषण या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता नहीं है जिससे –

1. देश की सुरक्षा को ख़तरा हो

2. विदेशों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंधों पर आंच आए

3. *सार्वजनिक व्यवस्था/ क़ानून व्यवस्था खराब हो*

4. *शालीनता और नैतिकता पर आंच आए*

5. अदालत की अवमानना हो

6. *किसी की मानहानि हो*

7. किसी अपराध के लिए प्रोत्साहन मिले, और

8. *भारत की एकता, संप्रभुता और अखंडता को ख़तरा हो*


संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्‍यप के अनुसार, ‘राज्‍य की कार्रवाई के विरुद्ध स्‍वतंत्रताओं के संरक्षण का अधिकार सभी नागरिकों को सुलभ है, लेकिन यह कोई आत्‍यंतिक या असीमित अधिकार नहीं है। हमारी स्‍वतंत्रता के साथ संविधान ने कुछ जिम्‍मेदारियां भी तय की हैं। जैसा कि न्‍यायमूर्ति दास ने कहा है – ‘बेहतर होगा कि व्‍यक्तिगत स्‍वतंत्रता का सामाजिक हित अन्‍य वृहत्‍तर सामाजिक हितों के अधीन हो।’ (ए. के. गोपालन बनाम मद्रास राज्‍य, एआईआर 1950, एससी 27)। सुभाष कश्‍यप के अनुसार, ‘भाषण और अभिव्‍यक्ति की स्‍वतंत्रता के अधिकार पर प्रतिबंध लगाने का उपबंध 1963 में 16वें संविधान संशोधन द्वारा जोड़ा गया था ताकि कोई भी व्‍यक्ति भारत की अखंडता या संप्रभुता को चुनौती न दे सके।’


अगर वर्तमान संदर्भ में देखें तो अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर कुछ भी बोल देने का चलन आम हो चला है। फिर बुद्धिजीवियों का एक खास समूह तुरंत अनुच्छेद 19(1) की आड़ लेकर उसके समर्थन में जुट जाता है। आज न सिर्फ भारत में, बल्कि पूरे विश्व में ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’ को ढाल बनाकर अप्रिय स्थितियां पैदा की जा रही हैं। सोशल मीडिया के आने के बाद से तो इसके दुरुपयोग की जैसे बाढ़ सी आ गई है। अभिव्यक्ति की आज़ादी की आड़ लेकर कभी दूसरे धर्मों का अपमान किया जाता है, मज़ाक उड़ाया जाता है और कभी चित्रों के माध्यम से, तो कभी आपत्तिजनक भाषा एवं बयानों से देश के माहौल को बिगाड़ने की कोशिश की जाती है।


कनीना सिटी रेस्पोंसिबल आपसे अनुरोध करता है भाषा की शालीनता बनाये रखें।